पोर्ट ब्लेयर का देश की आजादी से कनेक्शन जानिए.
दिल्ली:
अग्रेजों की गुलामी का एक और प्रतीक अब देश से हट गया है. अंडमान और निकोबार का पोर्ट ब्लेयर (Port Blair Now Vijaypuram) अब श्री विजय पुरम हो गया है. मोदी सरकार ने अंडमान निकोबार की राजधानी पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलकर श्री विजयपुरम कर दिया है. सरकार ने ये फैसला देश को औपनिवेशिक प्रतीकों से मुक्त करने के लिए लिया. यह केंद्र शासित प्रदेश सिर्फ अपनी खूबसूरती और समृद्ध समुद्री संपदा के लिए ही नहीं बल्कि देश के इतिहास में भी खास महत्व रखता है. अंडमान वह जगह है,जो देश के स्वतंत्रता संग्राम और इतिहास के पन्नों में अमर है. इसके बारे में विस्तार से जानते हैं.
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नेताजी सुभाष ने पोर्ट ब्लेयर में लहराया था तिरंगा
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह,वह जगह है,जहां पर देश की आजादी से पहले ही तिरंगा फहरा दिया गया था. ये कारनामा कर दिखाया था 'तुम मुझे खून दो,मैं तुम्हें आजादी दूंगा' का नारा लगाने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने. बात है दिसंबर 1943 की,जब नेताजी सुभाष पोर्ट ब्लेयर पहुंचे थे.उन्होंने पहली बार यहां की धरती पर ही तिरंगा फहराया था. नेताजी से आज से करीब 80 साल पहले आजाद हिंद सरकार बनाई थी. दूसरे विश्व युद्ध में जापान ने जब ये द्वीप ब्रिटेन से जीता तो इसे आजाद हिंद सरकार को दे दिया था.
पहली बार अंडमान की धरती पर फहराया तिरंगा
नेताजी सुभाष अंडमान की धरती पर तिरंगा फहराकर काफी रोमांचित थे. उन्होंने 9 जनवरी 1944 को रंगून में दिए भाषण में इस द्वीप को जापान के उनको देने की बात बताई थी. वह इस बात से बहुत खुश थे कि भारत के एक हिस्से को आजादी मिल गई. जापान द्वारा अंडमान आजाद हिंद सरकार को सौंपे जाने के डॉक्युमेट्स का जिक्र नेताजी के भतीजे अमीय नाथ बोस ने भी किया था. उन्होंने 22 अगस्त 1969 को भारत सरकार को चिट्ठी लिखकर इससे जुड़े दस्तावेज लेने को कहा था.
पोर्ट ब्लेयर की रूह कंपा देने वालीसेलुलर जेल
अंडमान का कनेक्शन सिर्फ नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही नहीं बल्कि वीर सावरकर से भी है. काला पानी की वो सजा,जिसका जिक्र आज भी कैदियों की रूह कंपा देता है,वह वीर सावरकर को अंडमान की ही सेलुलर जेल में दी गई थी. पोर्ट ब्लेयर में मौजूद ये जगह जेल नहीं यातनाओं का वह अड्डा था,जहां कैद रहना किसी के लिए भी आसान नहीं था.
पोर्ट ब्लेयर से सावरकर का कनेक्शन
13 मार्च 1910 को सावरकर को लंदन के विक्टोरिया स्टेशन पर गिरफ्तार किया गया था. 29 जून,1910 को सावरकर को भारत प्रत्यर्पण किए जाने का आदेश दिया गया. 1 जुलाई,1910 को सावरकर लंदन से भारत भेज दिया गया. सावरकर को यहां पर कई मामलों को मिलाकर 50 साल की सजा सुनाई गई. पहले वह भायकुला जेल और फिर 4 जुलाई 1911 को उन्हें काला पानी की सजा के लिए अंडमान भेज दिया गया. कहा जाता है कि अंडमान की इस जेल में कैदियों को बहुत ही सख्त सजा दी जाती थी.सावरकर सेलुलर जेल की 52 नंबर कोठरी में रहे. इस तरह से देश की आजादी में योगदान देने वाले वीर सावरकर का नाम भी अंडमान से जुड़ गया. आज जब पोर्ट ब्लेयर का नाम बदल गया है,तो एक बार फिर से अंडमान का इतिहास याद आ रहा है.
पोर्ट ब्लेयर में क्यों मिलती थी काला पानी की सजा
कहा जाता है कि पोर्ट ब्लेयर की सेसुलर जेल अंग्रेजों ने स्वतंत्रता सैनानियों को सख्त से सख्त सजा देने के लिए बनाई थी. 1857 की क्रांति के दौरान ही अग्रेजों ने इस जेल का निर्माण करवाया था. यह जेल चारों तरफ से समुद्र से घिरी थी,यानी कि भागने का कोई चांस ही नहीं. कोई भी कैदी अगर भागने की कोशिश भी करता तो वह समुद्र के पानी में डूबकर ही मर जाता. इस जेल को बनाया ही अग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने वाले स्वतंत्रता सैनानियों को यातनाएं देने के लिए गया था. उनको इस जेल के छोटे कमरों में कैद करके रखा जाता था. इसी वजह से इसे काला पानी की सजा कहा जाता है.
पोर्ट ब्लेयर का इतिहास जानिए
पोर्ट ब्लेयर शहर की नींव ब्रिटिश नौसेना अधिकारी लेफ्टिनेंट आर्चिबाल्ड ब्लेयर ने सन 1789 में रखी थी. शहर का नाम आर्चिबाल्ड ब्लेयर के नाम पर रखा गया था. बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने यहां पर अपना प्रशासनिक केंद्र बना लिया. इसके बाद इसे जेलखाने के तौर पर डेवलप किया गया. फिर अंग्रेज इस जगह का इस्तेमाल अपने जहाजों की आवाजाही के लिए करने लगे.
अंग्रेजों को क्यों पसंद आया पोर्ट ब्लेयर?
अंग्रेजों के पोर्ट ब्लेयर पर कब्जे की बड़ी वजह उनकी रणनीति थी. यह क्षेत्र रणनीति के लिहाज से बहुत ही अहम था. समुद्री सैन्य सुरक्षा के लिहाज से ये जगह अंग्रेजों को बहुत सुरक्षित लगी. अंडमान-निकोबार बंगाल की खाड़ी में था और यहां से ब्रिटिश साम्राज्य के समुद्री रास्तों की सुरक्षा आसानी से हो सकती थी. अंग्रेज इस जगह का इस्तेमाल भविष्य में व्यापार के साथ ही सैन्य अड्डे के लिए भी कर सकते थे.
पोर्ट ब्लेयर...चोल साम्राज्य का नौसैनिक अड्डा
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह कभी चोल साम्राज्य का नौसैनिक अड्डा हुआ करता था.चोल वंश के राजा राजेंद्र चोल-I ने पोर्ट ब्लेयर को सैन्य अड्डे के रूप में इस्तेमाल किया. उन्होंने इस द्वीप को एक अहम नौसेना अड्डे के रूप में डेवलप किया,जिससे हिंद महासागर में उनके व्यापारिक और सैन्य अभियानों को आसान बनाया जा सके. यह इलाका चोल साम्राज्य के लिए रणनीतिक रूप से भी अहम था. यहां से समुद्री मार्गों पर नियंत्रण रखना आसान था.
इतिहास बना पोर्ट ब्लेयर..
पोर्ट ब्लेयर अब इतिहास के पन्नों में कहीं धुंधला सा गया है. अब बात होगी तो श्री विजयपुरम की,जो अग्रेजों की गुलामी से आजादी का प्रतीक है. पोर्ट ब्लेयर का नाम लेते ही सभी के मन में नेताजी सुभाष और सावरकर का नाम फिर से उभरने लगता है. लेकिन अब श्री विजयपुरम की विजय गाथा को याद रखने का समय है,क्यों कि पोर्ट ब्लयर अब इतिहास बन गया है.