Fri Dec 20
इजरायल से जानी दुश्मनी, शिया-सुन्नी की भी गिरा डाली दीवार, जानें हिजबुल्लाह की पूरी कहानी
हिजबुल्लाह ने कुछ समय पहले ही इजरायल को दी थी गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी
नई दिल्ली:
गाजा में इजरायल और हमास के बीच चल रहे युद्ध को शुरू हुए अब करीब साल भर होने को हैं लेकिन बीते करीब साल भर में यह युद्ध हमास और इजरायल से निकलकर अब हिजबुल्लाह जैसे आतंकी संगठनों तक पहुंच गया है. हिजबुल्लाह वो आतंकी संगठन है जो लेबनान से सक्रिय है. हमास इजरायल युद्ध में हिजबुल्लाह शुरू से ही हमास के साथ खड़ा दिख रहा है. हिजबुल्लाह ने बीते कुछ महीनों में इजरायल की टेंशन बढ़ा दी है. कुछ दिन पहले ही उसने इजरायल को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी थी. इसके जवाब में इजरायल में लेबनान में अब पेजर और वॉकी-टॉकी में बंद लगाकर हिजबुल्लाह को करारा जवाब दिया है. चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं कि आखिर ये हिजबुल्लाह है क्या,ये कैसे अस्तित्व में आया और आखिर ये किसके समर्थन पर इजरायल को आंख दिखा पा रहा है...
हिजबुल्लाह आखिर है क्या...
हिजबुल्लाह का मतलब होता है- 'Party of God' यानी अल्लाह या फिर ईश्वर की पार्टी. यह लेबनान का एक 'शिया मुस्लिम' राजनीतिक दल होने के साथ-साथ अर्द्धसैनिक संगठन है. हालांकि,लेबनान में यह राजनीतिक दल के तौर पर काम करता है.हिजबुल्लाह यानी लेबनान का एक ऐसा संगठन जो मजबूत सैन्य क्षमता रखता है. यह इजरायल को लगातार चुनौती दे रहा है. ऐसे में जानकार बताते हैं कि इजरायल की सेना जब से गाजा में घुसी है उसके बाद से ही उसे लेबनान की सीमा से हिजुबुल्लाह के हमलों का भी सामना करना पड़ रहा है. बता दें कि बीते दिनों इसने इजरायल को चुनौती भी दी थी. जिसके बाद ही इजरायल ने लेबनान में हिजबुल्लाह के ठिकानों पर भी मिसाइलें दागी हैं.हिजबुल्लाह की शुरुआत कैसे हुई ?
हिजबुल्लाह की शुरुआत को समझने के लिए हमें जरा पीछे मुड़कर इतिहास को देखना होगा. यहां यह जानना जरूरी है कि साल 1943 तक लेबनान में फ्रांस का शासन था और इसका प्रभुत्व खत्म होने के बाद एक समझौते के तहत लेबनान की सत्ता देश के ही कई धार्मिक गुटों में बंट गई थी. 1943 में जो समझौता हुआ था उसके तहत धार्मिक गुटों की राजनीतिक ताकतों में बंटवारा हुआ,जो इस तरह था...एक सुन्नी मुसलमान ही देश का प्रधानमंत्री बनेगा,एक ईसाई राष्ट्रपति बनेगा,संसद का स्पीकर शिया मुसलमान बनेगा.फिर शुरू हुआ लेबनान में गृह युद्ध
इजरायल और फिलिस्तीन के बीच 1948 में शुरू हुए संघर्ष की वजह से फिलिस्तीन के कई शरणार्थी लेबनान पहुंचे. इनके यहां आने की वजह से लेबनान में सुन्नी मुस्लिमों की आबादी बढ़ गई. वहीं शिया मुसलमान अब अल्पसंख्यक हो गए. लेकिन इस समय सत्ता ईसाईयों के हाथ में थी,ऐसे में शिया मुसलमानों को हाशिए पर चले जाने का डर सताने लगा. इसके बाद ही यहां गृह युद्ध की शुरुआत हुई.लेबनान में चल रही अंदरूनी लड़ाई के बीच,इजरायल की सेना ने साल 1978 और 1982 में फिलिस्तीन के गुरिल्ला लड़ाकों को भगाने के लिए दक्षिणी लेबनान पर हमला कर दिया. इस हमले के बाद इजरायल ने कई इलाकों पर कब्जा भी कर लिया. ये वही इलाके थे जिसका इस्तेमाल फिलिस्तीनी लड़ाके इजरायल के खिलाफ हमले के लिए कर रहे थे.हिजबुल्लाह की स्थापना
साल 1979 में ईरान में सरकार बदली और नई सरकार को लगा कि ये सही वक्त है कि अब वह मध्य पूर्व इलाकों में अपना दबदबा बढ़ाएं. ईरान ने लेबनान और इजरायल के बीच चल रहे तनाव का फायदा उठाना चाहा और शिया मुसलामानों पर अपना प्रभाव जमाना शुरू कर दिया. इसी के साथ साल 1982 में हिजबुल्लाह नाम के शिया संगठन की शुरुआत हुई.मीडिया रिपोर्ट के अनुसार ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने अपनी इस्लामी क्रांति को बढ़ाने और लेबनान पर आक्रमण करने वाली इजरायली सेनाओं से लड़ने के लिए हिजबुल्लाह की स्थापना की थी. तेहरान की शिया इस्लामवादी विचारधारा को साझा करते हुए,हिजबुल्लाह ने संगठन में लेबनान के शिया मुसलमानों को भर्ती किया. ईरान ने हिजबुल्लाह को इजरायल के खिलाफ वित्तीय मदद देना शुरू कर दिया और जल्द ही हिजबुल्लाह खुद को एक प्रतिरोधी आंदोलन के तौर पर खड़ा कर दिया.
हिजबुल्लाह एक आतंकी संगठन
संयुक्त राज्य अमेरिका सहित पश्चिमी देशों ने हिजबुल्लाह को एक आतंकवादी संगठन घोषित किया है. सऊदी अरब सहित अमेरिका-सहयोगी खाड़ी अरब देश भी ऐसा ही करते हैं. यूरोपीय संघ के अनुसार हिजबुल्लाह की सैन्य शाखा को आतंकवादी समूह के रूप में वर्गीकृत करता है लेकिन उसकी राजनीतिक शाखा को नहीं.लेबनान की राजनीति में कितना दखल?
हिजबुल्लाह 1992 से लेबनानी सरकार का अभिन्न अंग रहा है,जब इसके आठ सदस्य संसद के लिए चुने गए थे,और पार्टी ने 2005 से कैबिनेट पदों पर कब्जा किया है. पार्टी ने 2009 में एक इंटीग्रेशन घोषणापत्र के साथ मुख्यधारा की राजनीति में अपने एकीकरण को चिह्नित किया जो अपने पूर्ववर्ती की तुलना में कम इस्लामवादी था और सच्चे लोकतंत्र की बात करता था. सबसे हालिया राष्ट्रीय चुनाव,2022 में,हिजबुल्लाह ने लेबनान की 128 सदस्यीय संसद में अपनी 13 सीटें बरकरार रखीं,हालांकि पार्टी और उसके सहयोगियों ने अपना बहुमत खो दिया.हिजबुल्लाह अनिवार्य रूप से अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में एक सरकार के रूप में काम करता है,और न तो सेना और न ही संघीय अधिकारी इसका मुकाबला कर सकते हैं. अरब बैरोमीटर के विश्लेषक मैरीक्लेयर रोश और माइकल रॉबिंस फॉरेन अफेयर्स के लिए लिखते हैं. यह सामाजिक सेवाओं के एक विशाल नेटवर्क का प्रबंधन करता है जिसमें बुनियादी ढांचा,स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं,स्कूल और युवा कार्यक्रम शामिल हैं,ये सभी शिया और गैर-शिया लेबनानी लोगों से हिजबुल्लाह के लिए समर्थन जुटाने में सहायक रहे हैं. फिर भी,2024 में अरब बैरोमीटर के सर्वेक्षण में पाया गया कि लेबनान में हिजबुल्लाह के महत्वपूर्ण प्रभाव के बावजूद,अपेक्षाकृत कम लेबनानी इसका समर्थन करते हैं.
हिजबुल्लाह का इजरायल के प्रति क्या है रुख ?अब यहां ये जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि आखिर हिजबुल्लाह का इजरायल के प्रति क्या रुख है. ये तो साफ है कि इजरायल हिजबुल्लाह का प्रमुख दुश्मन है. इस दुश्मनी की शुरुआत 1978 में दक्षिणी लेबनान पर इज़राइल के कब्ज़े से हुई थी. उस दौरान हिजबुल्लाह को विदेशों में यहूदी और इज़राइली ठिकानों पर हमलों के लिए दोषी ठहराया गया था,जिसमें अर्जेंटीना में एक यहूदी सामुदायिक केंद्र पर 1994 में कार बम विस्फोट शामिल हैं. इस हमले में 85 लोग मारे गए थे. 2000 में आधिकारिक तौर पर दक्षिणी लेबनान से इज़राइल के हटने के बाद भी,यह हिजबुल्लाह के साथ टकराव जारी रहा.हिजबुल्लाह और इज़राइली सेना के बीच समय-समय पर होने वाला संघर्ष 2006 में एक महीने तक चलने वाले युद्ध में बदल गया,जिसके दौरान हिज़्बुल्लाह ने इज़राइली क्षेत्र में हज़ारों रॉकेट दागे थे.
इस आतंकी संगठन ने अपने 2009 के घोषणापत्र में इज़राइली राज्य के विनाश के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई. दिसंबर 2018 में,इज़राइल ने लेबनान से उत्तरी इज़राइल तक चलने वाली मीलों लंबी सुरंगों को भी ढूंढ़ निकाला था. उसका दावा था कि इन सुरंगों को हिजबुल्लाह ने ही बनाया था.अगले ही साल हिजबुल्लाह ने एक इज़रायली सैन्य अड्डे पर हमला किया. इस हमले में चार साल से ज़्यादा समय में यह पहला गंभीर सीमा-पार आदान-प्रदान था. अगस्त 2021 में,हिजबुल्लाह ने लेबनान में इज़रायली हवाई हमलों के जवाब में एक दर्जन से ज़्यादा रॉकेट दागे. यह पहली बार था जब हिजबुल्लाह ने 2006 के इज़रायल-हिज़्बुल्लाह युद्ध के बाद से इज़रायल में दागे गए रॉकेटों की ज़िम्मेदारी ली.