Fri Nov 08
लोकसभा अध्यक्ष पद में क्या ताकत है कि इस बार आ गई चुनाव की नौबत
नई दिल्ली:
18वीं लोकसभा का पहला सत्र सोमवार को शुरू हुआ.इसके साथ ही लोकसभा के नए अध्यक्ष को लेकर चर्चाएं और आम सहमति बनाने का दौर शुरू हो गया.सत्ता पक्ष ने लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए ओम बिरला का नाम चुना है.सरकार ने इस पर आमसहमति बनाने की कोशिश की लेकिन उसे सफलता नहीं मिली. विपक्ष उपाध्यक्ष पद की मांग कर रहा था. सरकार ने इस मांग को ठुकरा दिया. अब लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव कराया जाएगा. सत्तारूढ एनडीए की ओर से ओम बिरला और विपक्षी गठबंधन की ओर से कांग्रेस के सुरेश मैदान में होंगे.आइए जानते हैं कि क्या है लोकसभा अध्यक्ष का पद और क्यों कितना महत्वपूर्ण है यह पद.
लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव किस नियम से होता है?
लोकसभा अध्यक्ष का पद का संसदीय लोकतंत्र में महत्वपूर्ण स्थान है.लोकसभा अध्यक्ष के बारे में कहा जाता है कि संसद सदस्य अपने-अपने चुनाव क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं,लेकिन अध्यक्ष सदन के ही पूर्ण प्राधिकार का प्रतिनिधित्व करता है. लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव संविधान के अनुच्छेद-93 के तहत किया जाता है. लोकसभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव सांसद अपने बीच में से ही करते हैं.
संसद की नई और पुरानी इमारत.
लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव इसके सदस्य सभा में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत के जरिए किया जाता है.यानी जिस उम्मीदवार को उस दिन लोकसभा में मौजूद आधे से अधिक सांसद वोट देते हैं,वह लोकसभा अध्यक्ष चुन लिया जाता है. अध्यक्ष के लिए कोई विशेष योग्यता निर्धारित नहीं है,उसे केवल लोकसभा का सदस्य होना चाहिए. हालांकि उम्मीद की जाती है कि लोकसभा अध्यक्ष चुने जाने वाले सदस्य में संविधान,देश के कानून,प्रक्रियाओं,नियमों और संसद की परिपाटियों की अच्छी समझ होगी.
लोकसभा अध्यक्ष की जिम्मेदारी क्या है?
लोकसभा अध्यक्ष सदन का कामकाज ठीक से चलाने के लिए जिम्मेदार होता है.इसलिए यह पद काफी महत्वपूर्ण है.संसदीय बैठकों का एजेंडा भी लोकसभा अध्यक्ष ही तय करते हैं. सदन में किसी तरह का विवाद पैदा होने पर कार्रवाई भी लोकसभा अध्यक्ष ही करते हैं.लोकसभा की विभिन्न समितियों का गठन अध्यक्ष ही करते हैं.
लोकसभा में अध्यक्ष का आसन इस तरह से बनाया गया है कि वह सबसे अलग दिखाई दे. अध्यक्ष अपने आसन से पूरे सदन पर नजर रखते हैं. लोकसभा अध्यक्ष से उम्मीद की जाती है कि वह तटस्थ भाव से सदन चलाएंगे.सदन में किसी प्रस्ताव पर मतदान में अगर दोनों पक्षों को बराबर वोट मिलने की स्थिति में अपना निर्णायक वोट डाल सकते हैं. आमतौर पर वो किसी प्रस्ताव पर मतदान में भाग नहीं लेते हैं.
ओम बिरला 17वीं लोकसभा में भी अध्यक्ष थे.
लोकसभा का अध्यक्ष,लोकसभा सचिवालय के प्रमुख होते हैं. यह सचिवालय उनके नियंत्रण में ही काम करता है.लोकसभा सचिवालय के कर्मियों,संसद परिसर और इसके सुरक्षा प्रबंधन का काम अध्यक्ष ही देखते हैं.
कौन और कैसे चुनता है लोकसभा का अध्यक्ष
आमतौर पर लोकसभा अध्यक्ष का पद सत्ता पक्ष और उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को देने की परंपरा रही है. लेकिन पिछले दो बार से ऐसा नहीं हो पा रहा है. 16वीं और 17वीं लोकसभा में बीजेपी के पास पूर्ण बहुमत था. 16वीं लोकसभा में बीजेपी की सुमित्रा महाजन को अध्यक्ष चुना गया था. वहीं एआईएडीएमके के एम थंबीदुरई को उपाध्यक् बनाया गया था.वहीं 17वीं लोकसभा में ओम बिरला को अध्यक्ष चुना गया था.इस लोकसभा में उपाध्यक्ष का चुनाव नहीं हुआ था.
कई बार ऐसे मौके भी आए हैं जब सत्ताधारी गठबंधन के किसी छोटे दल के सदस्य को भी लोकसभा अध्यक्ष चुना गया हो.
इसमें 12वीं लोकसभा के अध्यक्ष टीडीपी के जीएमसी बालयोगी और 14वीं लोकसभा के अध्यक्ष सीपीएम नेता सोमनाथ चटर्जी का नाम प्रमुख है.15वीं लोकसभा की अध्यक्ष मीरा कुमार लोकसभा अध्यक्ष के पद पर बैठने वाली पहली महिला थीं.
पद से कैसे हटाए जा सकते हैं लोकसभा अध्यक्ष?
संविधान का अनुच्छेद 94 सदन को लोकसभा अध्यक्ष को पद से हटाने का अधिकार देता है.लोकसभा अध्यक्ष को 14 दिन का नोटिस देकर प्रभावी बहुमत से पारित प्रस्ताव के जरिए उनके पद से हटाया जा सकता है.प्रभावी बहुमत का मतलब उस दिन लोकसभा में 50 फीसदी से अधिक सदस्य सांसद मौजूद होते हैं.लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 7 और 8 के जरिए भी लोकसभा अध्यक्ष को हटाया जा सकता है.अगर स्पीकर स्वयं पद छोड़ना चाहें तो वो अपना इस्तीफा उपाध्यक्ष (डिप्टी स्पीकर) को सौंपते हैं.
लोकसभा अध्यक्ष पद पर निर्वाचित होने से लेकर लोकसभा के भंग होने के बाद नई लोकसभा की पहली बैठक से ठीक पहले तक अपने पद पर रह सकते हैं. लोकसभा भंग होने की स्थिति में हालांकि अध्यक्ष संसद सदस्य नहीं रहते हैं,लेकिन उन्हें अपना पद नहीं छोड़ना पड़ता है.
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