Mon Dec 23
अतुल सुभाष सुसाइड के बीच दहेज मामलों पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी, जानें क्या कुछ कहा
2024-12-11 HaiPress
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने दहेज प्रताड़ना के एक मामले (Dowry Harassment Case) में अहम फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए अदालतों को दहेज मामलों में सावधानी बरतनी चाहिए. कोर्ट की ये टिप्पणी इसलिए भी अहम है क्योंकिअतुल सुभाष सुसाइड मामले ने पूरे देश में दहेज मामले में कानून के दुरुपयोग की नई बहस छेड़ दी है. अदालत ने कहा कि यह एक सर्वमान्य तथ्य है,जो न्यायिक अनुभव से प्रमाणित है कि वैवाहिक कलह के कारण उत्पन्न घरेलू विवादों में प्रायः पति के परिवार के सभी सदस्यों को फंसाने की प्रवृत्ति होती है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अदालतों को दहेज उत्पीड़न के मामलों में कानून के दुरुपयोग को रोकने तथा पति के रिश्तेदारों को फंसाने की प्रवृत्ति को देखते हुए निर्दोष परिवार के सदस्यों को अनावश्यक परेशानी से बचाने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए.
कानून के गलत इस्तेमाल पर छिड़ी बहस
सुप्रीम कोर्ट की ये सख्त टिप्पणी तब आई जब अतुल सुभाष सुसाइड मामले की वजह से दहेज मामलों में कानून के दुरुपयोग पर चर्चा हो रही है. बेंगलुरु में एक AI इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या से हर कोई गमगीन नजर आ रहा है. इस खुदकुशी मामले से महिलाओं को उनके ससुराल वालों द्वारा क्रूरता से बचाने वाले कानूनों के दुरुपयोग पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालतों को निर्दोष लोगों के अनावश्यक उत्पीड़न को रोकने के लिए दहेज उत्पीड़न के मामलों का फैसला करते समय सावधानी बरतनी चाहिए. बेंगलुरू में 34 वर्षीय व्यक्ति की आत्महत्या के बाद दहेज निषेध कानूनों के दुरुपयोग पर पूरे देश में बहस छिड़ी हुई है.अतुल के सुसाइड नोट में कई सवाल
आत्महत्या से पहले,अतुल सुभाष ने 80 मिनट का एक वीडियो रिकॉर्ड किया,जिसमें उन्होंने अपनी अलग रह रही पत्नी निकिता सिंघानिया और उसके परिवार पर पैसे ऐंठने समेत कई तरह के आरोप लगाए. अतुल सुभाष ने अपने 24 पन्नों के सुसाइड नोट में न्याय प्रणाली की भी आलोचना की. सुप्रीम कोर्ट की ये सख्त टिप्पणी तब आई जब उसने तेलंगाना उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज कर दिया,जिसमें एक व्यक्ति,उसके माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न के मामले को खारिज करने से इनकार कर दिया गया था. अदालत ने कहा कि एफआईआर की जांच से पता चलता है कि पत्नी के आरोप अस्पष्ट थे. इसमें यह भी कहा गया कि कुछ आरोपियों का इस मामले से कोई संबंध नहीं है और उन्हें बिना किसी कारण इसमें घसीटा गया है.प्रावधान महिलाओं के खिलाफ क्रूरता रोकने के लिए
जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि वैवाहिक विवाद से उत्पन्न आपराधिक मामले में परिवार के सदस्यों के नामों का उल्लेख मात्र,बिना उनकी सक्रिय संलिप्तता के स्पष्ट आरोपों के,शुरू में ही रोक दिया जाना चाहिएठोस साक्ष्यों से समर्थित न होने वाले ऐसे सामान्यीकृत और व्यापक आरोप या विशिष्ट आरोप आपराधिक अभियोजन का आधार नहीं बन सकते.पीठ ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए का प्रावधान पत्नियों/उनके रिश्तेदारों के लिए पति/उनके परिवार के साथ अपना हिसाब बराबर करने का कानूनी हथियार बन गया है,जबकि वे प्रावधान पति और उसके परिवार द्वारा महिलाओं पर की जाने वाली क्रूरता को रोकने के लिए लाए गए हैं,ताकि राज्य द्वारा त्वरित हस्तक्षेप सुनिश्चित हो सके.